#मथुरा
इसवी सन ६०० हुएगसांग ने भारत यात्रा का आखों देखा मथुरा का वर्णन कुछ इस प्रकार से किया है।
इस राज्य में लगभग २० संघाराम और २००० भिक्खू है। जो सामान्यरूप से हिनयान और महायान सम्र्पदाय है।
तीन स्तूप सम्राट अशोक ने बनवाये हुए हैं।
तथागत के पुनीत साथियों के शरीरावशेष पर भी स्मारक स्वरूप कई स्तूप बने हैं।जैसे सारीपुत्त, मोग्गलान, पुण्णमैत्रेयाणिपुत्त उपाली, आनंद, राहुल, मंज्जुसिरी तथा अन्य बोधिसत्व इत्यादी।
प्रत्येक वर्ष तीनों धार्मिक महीनों में और मास के व्रतोत्सवों के अवसर पर भिक्खू लोग इन स्तूपों के दर्शन को आते हैं और अभिवादन पूजन करके बहुमूल्य वस्तुओं को भेट करते हैं।ये लोग अपने अपने सम्र्पदायानुसार अलग अलग पुनीत स्थानों का दर्शन पूजन करते हैं।
जो लोग अभिधम्म का अभ्यास करते हैं वे सारीपुत्त को, जो समाधि में मग्न होनेवाले है वे मोग्गलान को, जो सुत्रों का पाठ करते हैं वे पुण्णमैत्रेयाणिपुत्त को, जो विनय का अध्ययन करते हैं वे उपाली को, भिक्खू लोग आनंद को, श्रमण राहुल को, और महायान सम्र्पदाय के बोधिसत्वों को सन्मान देकर अनेक प्रकार की भेंट पूजा चढ़ाते है देश का राजा और बड़े बड़े मंत्री लोग भी बड़े उत्साह के साथ यहाँ पर आकार धार्मिक उत्सव मनाते हैं।
नगर के पूर्व लगभग ५ या ६ ली की दूरी पर हम एक ऊँचे संघाराम में आये। जिसको महामान्य उपगुप्त ने बनवाया था। इसमें एक स्तूप हैं जहाँ तथागत गौतम बुद्ध के कटे हुए नाखून रक्खे हुए हैं। संघाराम के उत्तर में एक गुफा में एक पत्थर की कोठरी २० फीट उँची और ३० फीट विस्तृत है।
इस स्थान से चौबीस पच्चीस ली दक्षिण पूर्व की ओर एक सुखी झील के किनारे एक स्तूप हैं।
यह चित्र गव्हर्न्मेंट म्युझियम ऑफ मथुरा, उत्तर प्रदेश के है।
संदर्भ :- हुएगसांग की भारत यात्रा
पान :- ११८, ११९, १२०.
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